#################################################### MUKTABODHA INDOLOGICAL RESEARCH INSTITUTE Use of this material (e-texts) is covered by Creative Commons license BY-NC 4.0 Catalog number: M00257 Uniform title: siddhalakṣṃīpūjāpaddhati Main title: siddhalakṣṃīpūjāpaddhati Secondary title: kulavāgīśvarī pūjāna Secondary title: vanadurgā pūjāna Manuscript : Kashmir Research Center accession no: 2376 (S no: 936) Description: Comprises Kashmir Research Centers manuscript with accession numbers 2376.1 thru 2376.12 as described in their on-line catalog at http://www.jkpubliclibraries.nic.in/catalogue%20of%20manuscripts/sanskrit%20manuscript.pdf Notes: Date entered by the staff of Muktabodha under the supervision of Mark S.G. Dyczkowski. Revision 0: April 5, 2012 Internet publisher : Muktabodha Indological Research Institute Publication year : Publication city : Publication country : India #################################################### ओं नमो कुलवागीश्वर्यै || ओं देवीं कदम्बवनगामरुणत्रिकोणसंस्थां सितां सितवराम्बुजकर्णिकास्थाम् | सत्पुस्तकाक्षवलयान्वितपाणिपद्मां वागीश्वरीं कुलगुरुं प्रणमामि नित्यम् || उल्लिखन्तीं जगच्चित्त्रमन्नुल्लेखेपि शाङ्करीम् | सर्वसिद्धिप्रदां शक्तिं त्रिपुराम्बा नमाम्यहम् || ह्रीं वागीशाय विद्महे क्लीं कामेशाय धीं सौः तन्नः शक्तिः प्रचोः || गायत्रीं त्रिः पठित्वा || ओं ह्रीं फट् इत्यस्त्रपात्रं स्वदक्षे | तेन सर्वद्रव्यप्रोक्षणम् || ऐं त्रिकोणपीठपाद इत्यासने पुष्पं दत्वा तत्रोपविश्य प्राणायामादिविधाय स्वानुसन्धानाद् द्वादशकलान्यासः || ओं ऐं हृ | ओं क्लीं शि | ओं सौः शि | ओं ऐं कृ | ओं क्लीं ने | ओं सौः अस्त्राः || ऐं ऐशान्यम्बा पाद * * * * * * * * * * * * * *? पाद हृदि | ऐं वामाम्बापाद कुण्डलिन्याम् | ऐं अम्बाम्बापाद जीवधाम्नि || इति वाग्भव कलापञ्चकम् || क्लीं वैन्दव्यम्बापाद | बिन्दुस्थाने | क्लीं मोहिन्यम्बापाद भ्रूमध्ये क्लीं ऐन्द्र्यम्बापाद हृदि | क्लीं कामाम्बापाद गुह्ये | इति कामकलान्यासः || सौः विसर्गकलाम्बापाद मूर्ध्नि | सौः त्रिशूलकलाम्बापाद | नाडित्रये | सौः सञ्जीवनकलाम्बापाद | जीवधाम्नि || इति शक्तिकलात्रयन्यासः || ह्रीं फट् करशरीरोद्दीपनम् देहशुद्धिः अभिनवदेहोत्पादनम् करमूलमध्यान्तेषु वाग्भवकलान्यासः || गुदनाभिकुहरेषु चैतद् वीजन्यासः || क्लीं फडिति दिग्बन्धनम् हूमित्यवगुण्ठनम् | इत्यमृतीकरणम् || ततः प्राणायामपूर्वं शोषणादिधारणादिभिर्दिव्यदेहः करणगणसम्प्रमोषाद् देवीमव्यक्तरूपां | नादस्वभावां स्थूलां पुस्तकाक्षसूत्रवलयां कदम्बमालाभरणां मातृकां उद्गिरन्तीं सञ्चित्य वरिष्ठैर्मानसैः पदार्थैः पूजयेत् | इति मनोयागं विधाय पात्रं प्रकाल्य त्रिभिरुपयुक्तैर्बीजैः संस्कृत्य स्वजात्युचितैर्द्रव्यैः पूरयेत् | तत्र त्रिपञ्चक क्रमेण पूजयेत् | ततः स्वात्मपूजां विधाय बाह्ययागं विदध्यात् || ऐं ह्रीं कामदेवनाथपाद | ऐं ह्रीं रत्यम्बापाद | ओं वसन्तनाथ पाद | ओं प्रीत्यम्बापाद | ओं उद्याननाथपाद || द्वारवामदक्षिणमध्येषु सम्पूज्य वाग्भवबीजमुच्चार्य || ऐं त्रिपुरवागीशगुरुनाथपाद | क्लीं त्रिपुरसुन्दरपरमगुरुनाथपाद | सौः त्रिपुरवीरपरमाचार्यगुरुनाथपाद || इति गुरुत्रये व्योमदक्षिणतः पूज्यम् | ऐं षष्ठेशनाथपाद | क्लीं मित्रेशनाथपाद | सौः उड्डीशनाथपाद || इति व्योमवामे सिद्धत्रयम् || अथ व्योमपश्चाद्भागे | ऐं ह्रीं कामेश्वर्यम्बापाद | ऐं ह्रीं सुमनादेव्यम्बापाद | ऐं ह्रीं सौभाग्यदेव्यम्बापाद | ऐं ह्रीं आनन्दादेव्यम्बापाद | ऐं ह्रीं मन्मथादेव्यम्बापाद | ऐं ह्रीं प्रद्युम्नादेव्यम्बापाद | ऐं ह्रीं महादेवनाथपाद | ऐं ह्रीं अनङ्गादेवनाथपाद | ऐं ह्रीं वामदेवनाथपाद | ऐं ह्रीं शङ्करानन्दनाथपाद | ऐं ह्रीं साम्भवज्ञानानन्दनाथपाद | ऐं ह्रीं सुगुप्तानन्दनाथपाद | ऐं ह्रीं मुस्वलानन्दनाथ | ऐं ह्रीं सुगुरुनाथ || इति सिद्धमानवौघाः | ततो बहिरष्टौ मातॄः पूजयेत् || ऐं ह्रीं ब्राह्म्यम्बापाद | ओं माहेश्वर्यम्बापाद | ओं कौमार्यम्बापाद | ओं वैष्णव्यम्बा० | ओं वाराह्यम्बा० | ओं ऐन्द्र्यम्बा० | ओं ऐशान्यम्बा० | ओं आग्नेययम्बा० || इति स्वाग्रादारभ्यवामावर्तक्रमेण पूज्याः || ऐं त्रिकोणपीठपाद ऐं अम्बुजपीठपाद | ऐं कर्णिकाग्रपीठपाद | ऐं कम्बलगोलपीठपाद || इत्यासनं दलत्रयस्यान्तः संपूज्य | योनिमुद्राबन्धेन देवीमव्यक्तरूपां कदम्बगोलकाकारां सूक्ष्मां नादमयीं | स्थूलां पुस्तकाक्षसूत्त्रहस्तां कदम्बमालाभरणां मातृकामुद्गिरन्तीं त्रिधा सञ्चित्य कदम्बमध्ये अनच्छे पूजयेत् || ततो मूलम् || ऐं क्लीं सौः कुलवागीश्वर्यम्बापाद || इति मूलम् || त्र्यश्रान्तत्रिविष्टत्रिदलसरोजे प्रत्येकं दलत्रयस्य पूर्वदक्षिणवामेषु कर्णिकायामुपरि च पञ्चसु स्थानेषु त्रिपञ्चक क्रमः पूज्यः || ऐं पश्चिमाभिमुख लिङ्गपाद | क्लीं योनिमुद्राम्बापाद | सौः त्रिस्रोतः पीठपाद | पूर्वे || ऐं हृदयस्वयम्भूलिङ्गपाद | क्लीं क्षोभिणी मुद्राम्बापाद | सौः उड्डियानपीठपाद | दक्षे ऐं बिन्दुबाणलिङ्गपाद | क्लीं द्राविणीमुद्राम्बापाद | सौः पूर्णगिरिपीठपाद | वामे || ऐं इतरलिङ्गपीठपाद | क्लीं सर्वाङ्गासुन्दरी मुद्राम्बापाद | सौः कामरूपपीठपाद | ऐं अकुलाकाश लिङ्गपाद | क्लीं निरालम्बामुद्राम्बापाद | सौः जालन्धरपीठपाद || इति कर्णिकोपरि | इति त्रिपञ्चकक्रमेण पूजयेत् || अस्त्रार्घ पात्रात् पाद्यादि एते नैवाभ्युक्षितं भक्ष्यभोज्यादि नैवेद्यं दत्त्वा तृप्तां देवीं ध्यात्वा अमृतमुद्रां बद्ध्वा जपः कार्यः || वटुकयोगिनीभ्यो बलिः | ओं ऐं ईं क्लीं ब्लूं सः सः समयाम्बापाद | इति समयां पठित्वा निरालम्बमुद्रां बद्ध्वा देवीं स्वधाम्नि विसर्जयेत् || इति कुलवागीश्वरी पूजनम् || अथ दुर्गापूजनम् || ओं ह्रीं दुं सिंहासनाय नमः | ओं ह्रीं दुं पद्मासनाय नमः | ओं ह्रीं दुं दुर्गामूर्तये नमः | इति मूर्तिमन्त्रः || साङ्गमन्त्र न्यासपूर्वं स्वात्मपूजांविधाय || शङ्खरिचाप शरभिन्नकरां त्रिनेत्त्रां तिर?देतरांशु कलाया विकसत्किरीटाम् | सिंह स्थितामसुरसिद्धनुतां च दुर्गां दूर्वानिभां दुरितदुःखहरीं नमामि || इति ध्यात्वा || ओं ह्रां ह्रीं दुं सकलभयहरी दुर्गासुखं ददार्तु स्वाहा || इति मूलेन पूजयेत् || ततो ह्रामीत्यङ्गानि नैवेद्यं निवेदयेत् विसर्जयेत् | ओं ह्रीं दुं दुर्गायै नमः || ओं ह्रीं हृ | दुं शि | दुः शि | गा क यै ने | नमः अस्त्रा० || अथ वनदुर्गापूजनम् || कालमेघसन्निभांकलितान्धचन्द्रशिरोडहां बालनेत्त्रविभूषणां भयदायि सिंहनेषेदुषीम् | शङ्खचक्रकृपाण(खड्ग)खेटकशाङ्ग?बाणकरोटिका (कपाल) स्थूलवाहिभुजांभजेजिताखिलासुरसैनिकाम् | इति ध्यानम् || अस्य श्रीवनदुर्गामन्त्रस्य | अरण्यक ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः | श्रीवनदुर्गादेवता इष्टसिद्ध्यर्थं विनियोगः | आदौ तावदङ्गषट्केन मूलेन च न्यासं कुर्यात् | आत्मपूजां कुर्यात् | ओं ह्रीं दुं इच्छाशक्त्यै नमः | ओं ह्रीं दुं ज्ञानशक्त्यै नमः | ओं क्रियाशक्त्यै नमः | ओं कामिन्यै नमः | ओं कात्यायन्यै नमः | ओं रतिप्रियायै नमः | ओं आनन्दायै नमः | ओं मनोन्मन्यै नमः | इति पीठ शक्तयः || ओं आं प्रभायै नमः | ईं मायायै नमः | एं सूक्ष्माय नमः | ऐं विशुद्धायै नमः | ओं नन्दिन्यै नमः | औं सुप्रभायै नमः | अं जयायै नमः | अः सर्वसिद्धिप्रदायै नमः | इति वा पीठशक्तयः पूज्याः || अथ द्वारपूजा | ओं गां गणपतये नमः | वां वटुकाय क्षां क्षेत्त्रपालाय | शंशङ्खनिधये | पं पद्मनिधये | ज्म्र्यूं जयायै | भ्म्र्यूं विजयायै | ओं दुं धनुर्धरायै नमः | इति द्वारपूजा | मध्ये | ओं ह्रीं हूं महिषासुराय नमः | ओं ह्रीं हूं महासिंहाय नमः | तदुपरि भगवतीं पूजयेत् | उत्तिष्ठपुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितं यदि शक्त्यमशक्यं वा तन्मे भगवति शमय स्वाहा | वर्णाः ३७ | उत्तिष्ठ पुरुषि हृद | किं स्वपिषिशि | भयं मे समुपस्थितं शिखा | यदि शक्यमशक्यं वा कव | तन्मे भगवति ने | शमय स्वाहा अस्त्रा० | इत्यङ्ग षट्कम् | अथषट्कोणे | ब्रह्म सरस्वतीभ्यां नमः | लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः | गौरीशङ्कराभ्यां नमः | इति पृष्ठे | ओं ह्रीं दुं मधुकैटभविद्राविण्यै नमः | ओं महिषासुरमर्दिन्यै नमः | ओं सुम्भनिसुम्भमथिन्यै नमः | इत्यधः | अथाष्टदलेषु दलमूलेषु | ओं आर्यायै नमः | दुर्गायै भद्रायै भद्रकाल्यै अम्बिकायै क्षेमायै वेदगर्भायै क्षेमङ्कर्यै | आदौ दलेषु | शङ्खाय नमः | चक्राय खड्गाय खेटाय बाणाय धनुषे शूलाय कपालाय नमः | अथ दलाग्रेषु मातरः || ओं ह्रीं दुं आं ब्राह्म्यै नमः | ऌं ईं माहेश्वर्यै | ऌं ऊं कौमार्यै | ऌं एं वैष्णव्यै | ऌं ॡं वाराह्यै ऌं ऐं ऐन्द्रै ऌं औं चामुण्डायै ऌं अः महालक्ष्म्यै नमः | ततो लोकपालाः | लूं इन्द्राय वज्रहस्ताय नमः | रूं अग्नये शक्तिहस्तायेत्यादि | ओं हूं शिवदूत्यै नमः | ओं ह्रीं क्षां क्रां शरेभ्यो नमः | ओं ह्रीं श्रीं दुं ज्वले ज्वाले शूलिनि दुष्टगरलं हूं फट् स्वाहा || इति वन दुर्गापूजनं समाप्तम् || अथ गौरीपूजनम् || सामे भवतु सुप्रीता गौरीशिखरवासिनी | उग्रेण तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः | शूलाक्षसूत्त्रमकुरकुम्भान्सव्यापसव्ययोः | सिंहस्थां बिभ्रतीं देवीं नेत्त्रद्वितयशालिनीम् | प्रोत्तङ्गस्तननम्राङ्गीं विलोलविलसत्कचाम् | द्विरष्टवत्सराकारां देवीं भगवतीं नुमः || पद्मासनायनमः | गौर्यासनायनमः | ओं गौं गौरीमूर्तये नमः | तदुपरि | ओं ह्रीं सः महागौरि रुद्रदयिते स्वाहा | इति मूलम् | गां हृ गीं शि | गूं शि | गैं क | गौं ने | गः अ | इत्याङ्गानि सीं ज्ञानशक्तये नमः | सुं क्रियाशक्तये नमः | ततो लोकपालाः समन्त्राः पूर्वोक्ताः | स्फें सुभगायै | स्फिं ललितायै | स्फुं कापालिन्यै | स्फें काममालिन्यै नमः | लूं इन्द्रायेत्यादि | इति गौरीपूजनम् || ओं नमः सिद्धलक्ष्म्यै || देवीं शुद्धस्फटिकधवलां पञ्चवक्त्रां त्रिनेत्त्रां दोर्भिर्युक्तां दशभिरभितः शोभितां रत्नहारैः | दक्षिण पार्श्वे १ काद्यं मुण्डं २ सृणिममसृणं ३ शूलमच्छाच्छ?धारं ४ सारात्सारं ५ वरमनवरदक्षहस्तैर्वहन्तीम् || १ || वामपार्श्वे १ उत्खट्वाङ्गं कठिनविकटां २ टङ्कमूर्जस्विटङ्कपाशं ३ ज्ञानामृतरसमयं ५ पुस्तकं ६ चाभयं च | कामं वामैः शुभकरतलैर्बिभ्रतीं विश्ववन्द्यां पद्मप्रेतोपरिकृतपदां सिद्धलक्ष्मीं नमामि || २ || इच्छाशक्ति प्रथमलहरीमसुरान्तः प्रवाहां गर्भीभूतां त्रिविधमुदितां पञ्चधा प्रस्फुरन्तीम् | सम्यग्देवीं स्फटिकधवलां शुद्धकुन्देन्दुवर्णां रुद्रारूढां दशभुजयुतां क्षामगात्रीं नमामि || ३ || ओं ह्रीं श्रीं कुलगणपतिनाथपाद | ओं कुल गणपतिवल्यभाम्बापाद | ओं वटुकनाथपाद | ओं वटुकवल्यभाम्बापाद | ओं गङ्गाम्बापाद | ओं यमुनाम्बापाद | इति द्वारपूजा || अथ गुरु क्रमः | ओं ह्रीं श्रीं परमशिवनाथपाद | ओं शिवनाथपाद | ओं एकनेत्त्रनाथपाद | ओं कालाग्नि रुद्रनाथपाद ओं श्रीकण्ठनाथपाद | ओं पार्वती अम्बापाद | ओं दशकण्ठ(कन्दर)नाथपाद | ओं दीपिकाचार्यनाथपाद | ओं अन्धकासुरनाथपाद | ओं जयद्रथनाथपाद | ओं चर्यानन्दनाथपाद | ओं सुन्दरनाथपाद | ओं गगनभूतिनाथपाद | ओं इन्द्रभूतिनाथपाद | ओं भास्करनाथपाद | ओं पद्मादेव्यम्बापाद | ओं स्वगुरुनाथपाद | इति गुरुक्रमः || अथासनपूजा ह्रीं श्रीं आधारशक्त्यै नमः | ओं अनन्ताय | ओं धात्र्यै | ओं सुरार्णवाय | ओं पद्मासनाय | ओं हूं रुद्रासनाय नमः | ओं प्रेतासनाय || ह्रीं श्रीं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं ऌं ॡं एं ऐं ओं औं अं अः कदम्बवागीश्वर्यै नमः | ह्रीं श्रीं कं खं गं घं ङं हंस वागीश्वर्यै नमः | ह्रीं श्रीं चं छं जं झं ञं चित्त्रावागीश्वर्यै नमः | ओं टं ठं डं ढं णं मेधावागीश्वर्यै नमः | ओं तं थं दं धं नं वेद्यावागीश्वर्यै नमः | ओं पं फं बं भं मं भोग्यावागीश्वर्यै नमः | ओं यं रं लं वं सुभगावागीश्वर्यै नमः | ओं शं षं सं हं गौरीवागीश्वर्यै नमः || वर्गाष्टकं दलाष्टके | तदुपरि मूलविद्यया | तत्रादौ तावदात्मनो न्यासं कुर्यात् | वक्ष्यमाणक्रमेण || ओं नमः सर्वसिद्धियोगिनीभ्यो नमः | सर्वसिद्धिमातृभ्यो | नमो नित्योदितानन्दनन्दितायै सकलकुलचक्रनायिकायै भगवत्यै चण्डकापालिन्यै | तद् यथा ओं ह्रीं ह्रूं हां फें क्षों क्रों नमः | ओं परम हंसिनि निर्वाणमार्गदेविषमोपप्लव प्रशमनि सकलदुरितारिष्ट क्लेश दलनि सर्वापदऽम्भोधितरणि सकलशत्रुप्रमथिनि देवि आगच्छ २ हस २ वल्ग २ नररुधिरान्त्रवसाभक्षिणि मम स्वशत्रून्मर्द २ खाहि २ त्रिशूलेन भिन्दि २ छिन्दि २ खड्गेन ताडय २ च्छेदय २ तावद्यावन्मम सकलमनोरथान्साधय २ परमकारुणिके भगवति | महाभैरवरूपधारिणि त्रिदशवरनमिते सकलमन्त्रमातः प्रणतजनवत्सले देवि महाकालि कालनाशिनि हुं हुं हुं प्रसीदमदनातुरां कुरु कुरु सुरासुर कन्यकां ह्रीं श्रीं हां हूं फट् फट् फट् स्वाहा || वर्णाः २९ इति सिद्धलक्ष्मी मूलविद्या | अथास्य न्यासपद्धति लिख्यते || ओं नमः सर्वसिद्धियोगिनीभ्यः | पूर्ववक्त्राय नमः | पूर्ववक्त्रे न्यसेत् | ओं नमः सर्वसिद्धिमातृभ्यो दक्षिणवक्त्राय नमः | नमो नित्योदितानन्दनन्दितायै वामवक्त्राय नमः | सकलकुलचक्रनायिकायै पश्चिमवक्त्राय नमः | भगवत्यै चण्डकापालिन्यै ऊर्ध्ववक्त्राय नमः | त आस्ये | द्य हृदि | था नाभौ | ओं आस्ये | ह्रीं वामनासापुटे | हूं दक्षिणनासापुटे | हां वामनेत्त्रे | फें दक्षिणनेत्त्रे | क्षों वामकर्णे | क्रों दक्षिणकर्णे | न हृदये | मः द्वादशान्ते | एतन्मुण्डक्रमेण स्च्, ९, प्. ६१) नवद्वारेषु न्यसेत् | ओं परमहंसिनि हृदयाय नमः | निर्वाणमार्गदे शिर० | विषमोपप्लव प्रशमनि शिखा | सकलर्दुरितारिष्ट क्लेशदलनि कव | सर्वापदम्बोधितरणि नेत्त्रा | सकलशत्रु प्रमथिनि अस्त्रा | इति षडङ्गन्यासः | अनेनैवास्त्र मन्त्रेण दिग्बन्धनादिकं कुर्यात् | ओं देवि आगच्छ २ हस २ वल्ग २ नररुधिरान्त्रवसा भक्षिणिकाद्याय नमः | दक्षिणहस्ते काद्यमुद्रया न्यसेत् | मम स्वशत्रून्मर्द २ खाहि २ खट्वाङ्गाय नमः | वामहस्ते | त्रिशूलेन भिन्दि २ त्रिशूलाय नमः | दक्षिणहस्ते | च्छिन्दि २ खड्गेन खड्गाय नमः दक्षे | ताडय २ पाशाय नमः वामे | च्छेदय २ अङ्कुशाय नमः दक्षिणे | तावद् यावन् मम सकलमनोरथान्साधय २ वराय नमः दक्षिणे | परम कारुणिके अभयाय नमः वामे | भगवति महाभैरवरूपधारिणि | पुस्तकाय नमः वामे | त्रिदशवरनमिते टङ्काय नमः वामे | इत्या युधन्यासः || सकलमन्त्रमातः मातृकायै नमः | इत्यनेन अ क च ट त प युशात्मिका वर्णमातृका स्वरूपजनन शीलया भगवत्याऽनाहतनादरूपया शक्तिस्वरूपं प्रकाशितमिति मूलम् | प्रणतजनवत्सले रुद्रासनाय नम | इति भैरवरूपं वाहनं सञ्चिन्त्य भगवत्यां न्यसेत् | देवि महाकालि कालनाशिनि इत्यामन्त्रणं कृत्वा | भगवतीमावाहयेत् | हुं हुं हुं इत्यनेन पिण्डत्रयेण विषयपञ्चक इन्द्रियपञ्चक प्राणपञ्चक ग्राह्यग्रहण ग्राहक रूपस्य कालस्य विनाशिनी भगवत्या क्रिया प्रदर्शिता | तच्च पिण्डनाथं नादरूपं परमशक्तिरवोल्यासिकया भवति | ओं प्रसीदमदनातुरां कुरु कुरु सुरासुर कन्यकां देवी रूपं यथाभिमतं ध्यात्वा | ह्रीमिति कन्दे न्यसेत् | स्च् १०, प्. ६१) श्रीं नाभौ | हूं हृदये | फट् कण्ठे | फट् तालुनि | फट् बिन्दुस्थाने | स्वा इति नादनादान्ते | हा | इति द्वादशान्ते | इति वक्त्रपञ्चकम् | यस्या भगवत्यास्त्रिभुवनजनन्याः पृथिव्यप्तेजो वायवाकाशरूपं यथा संख्यं प्रतिनेत्रत्रयं सोमसूर्यवह्न्यात्मकं सृष्टिस्थितिसंहाररूपं वा वामदक्षिण भुजदशकं श्रोत्रत्वक्चक्षुः जिह्वाघ्राण वाक्पाणिपादपायूपस्थरूपं तत्संलग्नं विषयदशकमस्त्रदशकं शब्दस्पर्शरूपरसगन्धलक्षणं वचनादानगमनोत्सर्गानन्दरूपं च | एवं भगवती शक्तितिरावरणा सतीसत् स्वातन्त्र्योल्यासित तत्वा सर्वदेहव्यापिनी परमशिवस्या कुलवपुषः तद्धर्मधर्मिणी अभेदेन वर्तते | इति शिवम् | ओं हूं महाराध्याय नमः | इति बलिः | ह्स्वीं स्फुट् महाचण्डयोगीश्वरि | ठ्स्त्रीं स्फुट् थ्स्त्रीं स्फुट् | ठ्स्त्रीं स्फुट् | इति समया || इति संक्षिप्ता सिद्धलक्ष्मीपूजापद्धतिः समाप्ता || ओं श्रीशारिकाभगवत्यै नमः || ओं बीजैः सप्तभिरुज्ज्वला कृतिरसौ या सप्तसप्ति द्युतिः सप्तर्षिप्रणताङ्घ्रि पञ्कजयुगाया सप्तलोकार्ति हृत् | प्रोतप्रायमपञ्जरं कृतवती प्रद्युम्नमुन्मोचितं देवी सप्तक संयुता भगवती श्रीशारिका पातुनः || ओं ह्रीं श्रीं गणपतये वौषट् | ओं गणपति वल्लभायै वौषट् | ओं मुण्डराय वौषट् | इति द्वारपालाः | ओं ह्रीं श्रीं गुरुनाथपादुकां पूजयामि नमः | एवं परमगुरुपरमेष्ठि परमाचार्यादि सिद्धाः पूज्याः | वामे | ओं पद्मासनाय नमः | तदुपरि भगवतीं पूजयेत् | ओं ह्रीं श्रीं हूं फें आं शां शारिकायै नमः | मूलम् || ततोङ्गानि | श्रां हृ | श्रीं शि | श्रूं शि | श्रैं क | श्रौं ने | श्रः अस्त्रं || अथ न्यासः | ओं आस्ये | ह्रीं दक्षिणनासापुटे | श्रीं वामनासापुटे | हूं दक्षिणनेत्त्रे | फें वामनेत्त्रे | आं दक्षिणकर्णे | शां वामकर्णे | शा शिरसि | रि हृदये | का नाभौ | यै कन्दे | न गुह्ये | म ऊर्धोः | इति न्यासः | ओं ह्रीं अं अमायै नमः | ओं ह्रीं कं कामायै नमः | ओं ह्रीं चं चार्वाङ्ग्यै नमः | ओं ह्रीं टं टात्वरायै नमः | ओं ह्रीं तं तारायै नमः | ओं ह्रीं पं पार्वत्यै नमः | ओं ह्रीं यं यक्षिन्यै नमः | ओं ह्रीं रुं रुक्मिन्यै | ओं ह्रीं शं शम्भरायै नमः | इति कल्पोद्धृतः || ओं ह्रीं हूं कां कां कां इति भेदत्रयम् | ओं ह्रीं हूं अमायै नमः | इत्यादि देव्यः पूज्याः | ओं ह्रीं जं जम्बालजलेन्द्राय नमः | इति क्षेत्रेशम् || इति शारिकापूजनम् || वरदाभयहस्तां च खड्गशूलधरां शुभाम् | शुद्धस्फटिकसङ्काशां पद्मारूढां विचिन्तयेत् || ओं ह्रीं श्रीं फ्रें एकान्त्यै नमः | इति मूलम् || करादि देहन्यासश्च एकोच्चारे भविष्यति | इत्येकान्ती || ओं ऐं ह्रीं श्रीं ख्फ्रें ह्स्रौं नमो भगवति कुब्जिके || ङ ञ ण नमे || अघोरमुखि || क्रां क्रीं किणि किणि विच्छे || इति कुब्जिका || ओं ह्रीं फ्रें श्रीं चण्डयोगेश्वरि भवभवानि सर्वकामप्रदे सर्वसौभाग्यदायिनि ह्रीं नमः स्वाहा | इति कुरिका || ओं दोर्भियुक्तां चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधानां हस्तेनैकेन पद्मं सितमपिचषकं पुस्तकं चापरेण | या सा कुन्देन्दु शङ्खस्फटिकमणिनिभाभासमानासमानासामेवाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना || ऐं वद वद वाग्वादिनि स्वाहा | इति मूलम् | ऐं हृ वद वद शि वाग्वा शि दिनि क स्वाने | हा अस्त्रा | इति वाग्वादिनी पूजनम् || इ अक्षसूत्त्राम्बुजकरामादर्शकलशाङ्किताम् | मीनपद्मासनासीनां वितस्तां सरणं श्रये || ओं श्रीं गां गीं सः वितस्तायै नमः | मूलम् || गां हृ गीं शि गूं शि गैं क गौं ने गः अस्त्रा | ह्स्व्यरां गां गीं गूं गीं गः वितस्तायै नमः | इत्यपरः | इति वितस्ता पूजनम् || ज्वालामुखे महाज्वालेति ध्यानं | पुनश्च | कल्पान्तदहनज्वाला बद्ध्वायत शिरोरुहे | मातः क्रूरासुवदना वैकर्तने दृढव्रता || अम्बिकायै विद्महे महामायायै धीमः | तन्नः अम्बा प्रचोदयात् | ऌ ओं ह्रीं श्रीं फुं ज्वाला भगवत्यै नमः | ओं ह्रीं हृ श्रीं शि फुं शि ज्वाला क भगवत्यै ने नमः अस्त्रा || गौर्यै नमः | वामपादे || गायत्र्यै दक्षिणे || सावित्र्यै वामजानौ || सरस्वत्यै दक्षिणे | नरलक्ष्म्यै नाभौ || उभायै वामस्कन्दे || कामायै दक्षे || भवान्यै शिरसि || लक्ष्म्यै नमः || पू ऋद्धायै | म तुष्ट्यै | द पुष्ट्यै | नै सुधायै | प स्वाहायै | वा धृत्यै | उ मत्यै नमः || ई पूर्वादिदिक्षु पूजयेत् | मध्ये | ओं ज्वालामुख्यै नमः | इति मूर्ति मन्त्रः | ततो मूलं साङ्गं पठेत् || ज्वालापर्वत संस्थितां त्रिनयनां पीठत्रयाधिष्ठितां ज्वालाडम्बरभूषितां सुवदनां नित्यमदृश्यांजनैः | सन्माहात्म्य विशेष चित्त्रविलसत् कान्तिं सितां कामदां तां वन्दे सुरसिद्धवन्दितपदां ज्वालां हृदब्ज श्रियम् || ध्यानं ध्यात्वा || ओं ह्रीं श्रीं (हृ) ज्वाला(शिः)मुखि ममसर्वशत्रुन्(शिखा)भक्षय(भव)भक्षय हूं फट् (नेत्त्रे) स्वाहा (अस्त्रा) | इति मूलमपरज्वालायाः || इ || ओं नमोन्न पूर्णायै || एकेन चाप मितरेण करेण बाणमन्येन पाशमितरेण सृणिं दधाना | आनन्दसुन्दरतल प्रवहत्सुशुभ्रामाचिन्तयत् स्फुरत्तु काचन देवतामाम् | रक्तां नृचर्म(विचित्त्र)वसनांनवचन्द्रशूतामन्न प्रदाननिरतांस्तनभारनम्राम् | भक्तोहमिन्दुशकलाभरणां विलोक्य हृष्टां भजे भगवतीं भवदुःखहर्त्रीम् || स्वयं अन्नं च विद्महे स्वयं भुञ्जीम धीमहि | तन्नो अम्बा प्रचोदयत् | ऌ ओं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे नमः | ओं ह्रीं नमोन्नपूर्णेश्वर्यै | ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः अङ्गानि | इत्यन्नपूर्णापूजनम् || ओं नमो लक्ष्म्यै || आसीनां सरसे रुहे स्मित मुखी हस्ताम्बुजैर्विभ्रती दानं पद्मयुगाभयौ च वपुषा सौदामिनी सन्निभा | मुक्ताभासविराजमान विपुलस्तुङ्गस्तरोद्भासिनी | पायान्नः कमलाकटाक्षविभवैरानन्दयन्ती हरिम् || ओं ह्रीं श्रीं लक्ष्मि महा(हृद)लक्ष्मि सर्वकाम(शिर)प्रदे सर्वसौभाग्यदायिनि अभिमतं प्रयच्छ २ | सर्वे सर्वगते अरूपे (कर) सर्वदुःख(ने)विमोचिनि | ह्रीं सः स्वाहा (अस्त्रा) || इति लक्ष्मीविद्यागवाक्षी मन्त्रश्च || रक्ताननां कजकपालकरां त्रिनेत्त्रां लीलापरां भगतीं करिराज गम्याम् | ब्रह्मेन्द्र रुद्रनमितां सुरसिद्ध सेव्यां लक्ष्मीं नमामि सततं परयापि भक्त्या || ओं हूं (हृ) सर्वेषां (शि) हस्तान्(नि)मम(का)धनं देहि (ने) हूं वित्त(अ)लक्ष्म्यै स्वाहा | इति वित्तलक्ष्मीपूजनम् || नमो हंसवागीश्वर्यै || परापश्यन्ती मध्यमिक कलनावैखरमयी प्रकृष्टं वा कुत्वं प्रभवति यतो देह विभवात् | यदप्यास्ते कास्मीरिकगिरिवरे वेड?वपुषास्वहं सा वागीशी भुवनजननी त्वांस्तु म इति | मूलसूत्त्रं | एकानना भुजतडिन्नयनाक्ष पक्ष्म सूक्ष्मभ्रमद्भ्रमरविभ्रम दृष्टि हृष्टा | कुन्देन्दुहारहसिताङ्गसिताद्विहस्ते विन्यस्य पुस्तकवराक्षगुणं वहन्ती || सत्पद्मको शवरविष्टरविष्टबद्धपद्मासनं सकलपुष्टिकरीं प्रहृष्टम् | हंसाननां क्वचिदथो हृदये स्व हंसवागीश्वरीं भगवतीं प्रणतः प्रणौमि || ओं गणपतिनाथपाद | गणपति वल्लभाम्बापाद | वटुकनाथपाद | गुरुनाथपाद | गुरुवल्लभाम्बापाद || दिग्देवताद्वारि नन्दि महाकाल गङ्गायमुनादेहल्यः पूज्याः || (दिग्देवताभ्यो नमः | नन्दिने महाकालागङ्गायै यमुनायै देहल्यै) ओं ह्रीं ह्स्रूं ऐं क्रं मं वेडाभगवति हंसरूपिणि स्वाहा || ह्सूं विष्णवे नमः | ओं हूं हौं फट् सङ्कराय नमः | जम्बिन्यै नमः | मोहिन्यै कान्त्यै लक्ष्म्यै रक्तायै शुष्कायै उत्पलायै नमः || इति हंसवागीश्वरी पूजनम् || ओं नमो राज्ञीभगवत्यै || या द्वादशार्क परिमण्डित मूर्तिरेका सिंहासन स्थितवतीमुरगावृतां च | देवीमनक्षगतिमीश्वरतां प्रपन्नां तां नौमि भर्गवपुषीं परमार्थराज्ञीम् || सूर्यकलाय विद्महे भानुरत्नाय धीमहि | तन्नो राज्ञीप्रचोदयात् || ओं गां गणपतये नमः | ओं भीमराजाय नमः | कुमाराय नमः | द्वारे | अथ नागम्ध्ये | पूर्वे वासुकये नमः | नीलनागराजाय (आ) तक्षकाय (द) कार्कोट (नै) पद्मनाग (प) महापद्म (वा) शङ्खपाल (त) कुलिकनागराजाय नमः (ई) | मध्ये सहस्ररस्मिरत्नभूषिताय सहस्रभोगाय द्विसहस्रलोचनाय द्विसहस्रजिह्वाय सहस्रनागकोटि परिवृताय पीताम्बराय मुसुलपाणये अनन्तनागराजाय नमः | तत्पृष्ठे | कमलासनाय नमः ओं ह्रीं श्रीं रां राज्ञी भगवत्यै नमः || ओं ह्रीं हृ श्रीं शि रां शिखा | राज्ञी क | भगवत्यैने नमः अस्त्रा | ओं ह्रीं श्रीं रामशूरायक्षेत्त्रेश्वराय वौषट् || || ओं शीतांशुबालार्क कृषाणु नेत्त्रां चतुर्भुजामेणत्वगासनस्थाम् | शङ्खाब्जशूलासिधरां महेशीं राज्ञीं भजेहं तु हि नाद्रिरूपाम् || ओं ह्रीं श्रीं रां क्लीं सौः भगवत्यै राज्ञ्यै ह्रीं स्वाहा || रां रीं रूं रैं रौं रः अङ्गानि | ओं ह्रीं विजयायै नमः | ह्रां जगन्मात्रे नमः | ह्रौं जयायै नमः | ह्रः जगद्धात्र्यै नमः || सं १९३९ || एकोनविंशतिशते षड्वर्गे वह्निसंयुते | अब्धे तपः शुक्लपक्ष एकादश्यां समापिता || || श्रीसत्पद्धतिरानन्द कौलेन मुक्तिदायिनी श्रीसद्गुरोः करुणया भूयाच्छ्रीशम्भुप्रीतये || २ || अथ शारदापूजनम् || सिंहासनां त्रिनयनां शरसार्ङ्गकुन्तघण्ठासुधाकलश सन्मदवारणाख्यैः | युक्तायुधैः कनकगौररुचिर्विभूत्यै भूयात्समस्तफलदाननुशारदासौ || ग्रां चण्डाय नमः | गूं प्रचण्डाय नमः | इति द्वारपालौ | ओं क्रौं गौं कले वौषट् | ओं श्रौं महागजकले वौषट् | ज्रौं महापद्मकले वौषट् | ओं त्रौं सरस्वत्यैर्फट् | ओं प्रौं श्वेत चूडायै वौषट् | व्रौं महाचन्द्रायै वौषट् | श्रौं माहेन्द्र्यै वौषट् | ह्रौं कामयैर्फट् | श्रौं महाशङ्कुकर्णायै नमः | ब्रौं पाटलायै नमः | ल्रौं विन्द्यवासिन्यै नमः | र्म्र्यौं महापाशाण्डिन्यै नमः | ओं रर्म्र्यौं महाशैलरूपिण्यै नमः | पायै इत्यपि | ओं त्रौं महासिद्धि सुरार्चितायै नमः | ओं श्रीं (ह्रीं) महासर्वगुर्व्यैर्फ्रट् | (आसनेस्यायः कुम्भीर उक्तः स चैव मधुनोचते | अप्रसिद्धत्वात् स्फुटी क्रियते || ऊष्ट्रग्रीवोगजसकन्दो हृद्वकर्णो हुडाननः | व्याडजङ्घोपमाकारो वज्रायुधनखोपमः | कूर्मपृष्ठो मीनपुच्छः कुम्भीरः परिकीर्तितः | हुडस्य मेषस्ये वासनं यस्य वज्राख्येना युधेन नखोपमा यस्य ||) इति मातृचक्रम् | ओं पद्मासनाय नमः | ओं श्रीं कुभीर हूं मूर्तिः आसनम् | आदित्यादि गुरवः | ओं श्म्रीं शारदायै सुधा | इति मूलं | स्म्रीं हृ (ओं) शाशि(ओं)रसि(ओं)दाक(ओं)यैने(ओं) सुधा अस्त्रा | आदित्यादि ग्रह विश्वकर्मप्रभास श्रीघननन्द्याद्या गुरवः | ह्रीं श्रीं क्लीं शारदाभगवत्यै ह्रीं श्रीं सः २ ओं शांशारदाभगवत्यै नमः | ओं ह्रीं श्रीं ख्छ्रीं शारदाभगवत्यै नमः | चतुर्थः | ओं ह्रीं सः नमो भगवतिशारदायै ह्रीं स्वाहा | पञ्चमः || इति शारदापूजनम् || अथ ज्येष्ठेश्वरीपूजनम् ओं ह्रीं र्च्रीं ह्रीं श्रीं हः फट् | ज्येष्ठे श्वर्यै नमः | ओं ह्रीं ज्ञ्रीं योगेश्वर्यै नमः | इति योगेश्वरी || तन्मध्ये पूजयेद् देवीमेकान्तीं नामदैवताम् | एकवक्त्रां चाष्टभुजां त्रिनेत्त्राभरणैर्युताम् || कपालखट्वाङ्गधरां पाशाङ्कुशवरार्पिताम् | ततः पद्मनिभां देवीं वालार्ककिरणारुणाम् || जपाकुसुमसङ्काशां दाडिमीकुसुमोपमाम् | पद्मरागप्रतीकाशां कुङ्कुमोदकसन्निभाम् || स्फुररन्मुकुटमाणिक्य किङ्किणी जालमण्डिताम् | पुष्पसौगन्धिमधुर कवरी भारशोभिताम् || कालालिकुलसङ्काश कुटिलालकपल्लवाम् | प्रत्यग्रारुणसङ्काशवदनाम्भोज मण्डलाम् || किञ्चिदर्धेन्दु कुटिलललाटमृदुपट्टिकाम् | पिनाकधनुराकार सुभ्रूवं परमेश्वरीम् || आनन्दमुदितोल्लोल लीलान्दोलित लोचनाम् | स्फुरन्मयूखसङ्घातविततस्वर्णकुण्डलाम् || सुगण्डमण्डलाभोग जितेन्दुमृतमण्डलाम् | विश्वकर्मादि निर्माणसूत्रस्वस्पष्टनासिकाम् || ताम्रविद्रुमबिम्बाभरक्तौष्ठीममृतोपमाम् | स्मितमाधुर्यविजितमाधुर्यरससागराम् || दाडिमीबीजवज्रातदनुपंक्तिविराजिताम् | अनौपम्य गुणोपेत चिवुकोद्देशशोभिताम् || कम्बुग्रीवां विशालाक्षीं मृणालललितैर्भुजैः | मणिकङ्कणकेयूरभारखिन्नैः प्रशोभिताम् || रक्तोत्पलसमाकार सुकुमारकराम्बुजाम् | कराम्बुज नखद्योत वितानितनभस्तलाम् || मुक्ताहारलतोपेत समुन्नत पयोधराम् | त्रिवलीवलनायुक्त मध्यदेश सुशोभिताम् || लावण्य सविदावर्ताकारनाभिविभूषिताम् | अनर्घरत्नघटितकाञ्चीयुक्तनितम्बिनीम् || नितम्बबिम्बद्विरदरोमराजीवराङ्कुशाम् | कदली ललितस्तम्भ सुकुमारोरुमीश्वरीम् || लावण्य कदली तुल्य जङ्घायुगलमण्डिताम् | गूढगुल्फपदद्वन्द्व प्रपदाजितकच्छपाम् || नमद्ब्रह्मशिरोरत्न निर्घृष्टचरणाम्बुजाम् | तनुदिर्घाङ्गुलीभास्वन्नखचन्द्रविराजिताम् || शीतांशुशतसङ्काशकान्ति सन्तानहासिनीम् | लौहित्यजितसिन्दूर जपादाडिमरागिणीम् || रक्तवस्त्रपरीधानां पाशाङ्कुशकरोद्यताम् | रक्तपद्मनिविष्टां तु रक्ताभरणमण्डिताम् || चतुर्भुजां त्रिनेत्रां तु पञ्चबाणधनुर्धराम् | कर्पूर शकलोन्मिश्रताम्बूल पूरिताननाम् || महामृगमदोद्दाम कुङ्कुमारुणविग्रहाम् | सर्वशृङ्गारवेशाढ्यां सवालङ्कार भूषिताम् || जगदा ह्लाद जननीं जगदाह्लादकारिणीम् | जगदाकर्षणकरीं जगत्कारणरूपिणीम् || सर्वमन्त्रमयीं देवीं सर्वसौभाग्यसुन्दरीम् | सर्वलक्ष्मी मयीं नित्यां परमानन्दनन्दिताम् || महात्रिपुर मुद्रां तु स्मृत्वा वाहनरूपया | विद्यया वाह्यसुभगे नमस्कार नियुक्तया || पूर्वोक्तया साधकेन्द्रो महात्रिपुरसुन्दरीम् | चक्रमध्ये तु सञ्चिन्त्य ततः पूजनमारभेत् || सुखवासा च मनीयवितनच्छत्र चामर नृत्तगीत जप समाधि होमादिभिस्सन्तुष्टं भावयेत् | ततो बाह्ययागार्थं मूलवक्त्राङ्गैः स्ववामेर्घ पात्रपूजा | (ब्रह्मस्थानस्य पूर्वेण गुरून्पूज्य विनायकम् | वायव्ये पूजयेद् देवि गन्धपुष्पैरनुक्रमात् || अविघनार्थं आदौ वायव्ये गणपतिं पूजयेत् | ततः पूर्वस्यां दिशि गुर्वादी नित्यनु क्रमार्थः) अमृतमुद्रां बद्ध्वा तदम्बुकणैः सर्वोपचारान्संप्रोक्त्यात्मानं शिवस्वरूपं गन्धपुष्पादिभिः सम्पूज्य | शिवहस्तं कुर्यात् | ततः स्ववामे ऊर्ध्वोर्ध्व पठि क्रमेण गुरुपूजा कार्या | अत्रैव श्रीगणपति पूजनम् | ओं गूं गां गणपतये नमः | ओं वां वागीश्वर्यै नमः | इति वायौ | ओं गुरवे नमः | ओं परमगुरवे नमः | ओं परमेष्टिगुरवे नमः | ओं परमाचार्याय नमः | ओं आदिसिद्धेभ्यो नमः | ओं क्षां क्षेत्त्रपालाय नमः | इति वामे गुरुपङ्क्तिः | अत्रैव विशेष दिनेषु कलशपूजनम् | एतेषामाज्ञां गृहीत्वा आसनपूजा | ओं अनन्ताय नमः | ओं आधारशक्तये नमः | ओं कन्दाय नमः | ओं अङ्कुराय नमः | ओं नालाय नमः | ओं ऋं धर्माय नमः | ओं ॠं ज्ञानाय नमः | ऌं वैराग्याय नमः | ॡं ऐश्वर्याय नमः | एते पादुकाः सितरक्तपीतकृष्णाः अग्नेरीशान्तं सिंहरूपास्त्रिनेत्त्रा ध्यातव्या पूजनीयाश्च | ओं अधर्माय नमः | ओं अज्ञानाय नमः | ओं अवैराग्याय नमः | ओं अनैश्वर्याय नमः | एते गात्रकास्सितवर्णास्मिंहासनपट्टिकारूपाः | पूर्वाद्युत्तरान्तम् | ओं भग्वेदाय नमः | ओं यजुर्वेदाय नमः | ओं सामवेदाय नमः | ओं अथर्ववेदाय नमः | एतद्वेद चतुष्टयं | गात्रपादुकाभ्यां सहसन्धानकीलकरूपं विभाव्य विन्यस्य च पूज्यम् | ओं कृतयुगाय नमः | त्रेतायुगाय नमः | द्वापर्युगाय नमः | ओं कलियुगाय नमः | इति ईशानादि कोणेषु | ओं अधच्छादनाय तमो गुणाय नमः | ओं मध्यच्छादनाय रजोगुणाय नमः | ओं ऊर्ध्वच्छादनाय सत्वगुणाय नमः | इत्यम्बुजकर्णिकाधस्तदासन योगपीठं प्रेतान्तमिष्ट्वा | ओं सदाशिवाय महाप्रेतासनाय नमः | इति च ब्रह्मविष्णुरुद्रोर्ध्ववस्तिनं सदाशिवं महाप्रेते वसन्तमूर्ध्वस्थ शिवावलोकिनं विभाव्य सम्पूज्य च | तदुपरिकर्णिकोर्ध्वे सकलभट्टारकं देवी युतं निष्कलं च सम्पूज्य ओं क्षं ईशानवक्त्राय नमः | ईशपत्रे | ओं यं तत्पुरुषवक्त्राय नमः | पूर्वदले | ओं रं अघोरवक्त्राय नमः | दक्षदले | ओं वं वामदेववक्त्राय नमः | वामदले | ओं लं सद्योजातवक्त्राय नमः | पश्चिमदले | ओं अघोरेभ्यस्सर्वात्मने हृदयाय नमः | वह्निदले | ओं थ घोरेभ्यो ब्रह्मशिरसे स्वाहा | ईशदले | घोरघोरतरेभ्यश्च ज्वालिन्यै शिखायै वौषट् | वक्षसि | सर्वतश्शर्वसर्वेभ्यः पिङ्गलाय कवचाय हुं वायो | ओं जुं सः ज्योतीरूपाय नेत्राय वषट् | कर्णिकाग्रे मध्ये | ओं नमस्ते रुद्ररूपेभ्यो दुर्भेद्याय पाशुपतास्त्राय फट् | प्राक्तश्चतुर्षुदिक्षु | ओं वामायै नमः | ओं ज्येष्ठायै नमः | ओं रौद्र्यै नमः | ओं काल्यै नमः | ओं कलविकरिण्यै नमः | ओं बलविकरिण्यै नमः | ओं बलप्रमथिन्यै नमः | ओं सर्वभुतदमिन्यै नमः | एतद् देवताष्टकं दलेषु पूज्यम् | गोक्षीरधवलां शक्तिं कर्णिकायां मनोन्मनीम् | ओं मनोन्मन्यै नमः | इति कर्णिकापृष्ठे | ओं सूर्यमण्डलाय नमः | पत्रेषु | ओं सोममण्डलाय नमः | केसरेषु | ओं वह्निमण्डलाय नमः | कर्णिकायाम् | एष्वेव स्थानेषु | ओं ब्रह्मणे नमः | ओं विष्णवे नमः | ओं रुद्राय नमः | ओं महाप्रेतासनाय नमः | इत्यासन पक्षः | तदुपरिमूर्तिसङ्कल्प्य || अत्रैव विष्णोरासनादि | षडक्षरेण देवं सम्पूज्य स्नानार्थमाज्ञां प्रार्थयेत् | ओं गणनाथाम्बिके स्वामि पादुके मां जगद्गुरुम् | यजन्तमनुजानी हि यथा सम्पन्न कारकम् || भगवंस्त्यामनुज्ञाय विभु मूर्तौ व्यवस्थिताम् | पूजामपनयाम्यस्य न वां तु वितराम्यऽहम् || इत्याज्ञां गृहीत्वा | भद्रपीठे कल्पितैवं विधासने देवं संस्थाप्य | अस्त्रमन्त्रगन्तुकत्रयेण देवं संस्नाप्य पीठमेकेन अस्त्रार्घ पात्रं क्षिप्त्वा | पीठे आसनपक्षं न्यस्य | अञ्जलो पुष्पं गृहीत्वा | ओं भगवन्नागच्छ २ नमः || आवाहनमुद्रया | आवाह्य | भगवन्सन्तिष्ठ २ स्वाहा | स्थापन्यास्थापयेत् | भगवन्सन्निरुद्धो भव २ | हूं फट् | निरोधिन्या निरोधयेत् | ओं भगवन्सन्निहितो भव भव वषट् | इति सन्निधिमुद्रया सन्निधाप्य | ओं हूं भगवन्नव गुण्ठनं करोमि नमः | इत्यवगुण्ठ्य | ओं भगवन्नमृती करोमि नमः | इत्यमृतमुद्रया मृतीकरणम् | ततो मन्त्रार्घ पात्रात् | ओं भगवन् पाद्यं गृहाण नमः | ओं भगवन्नाचमनीयं गृहाण स्वधा | ओं भगवन्नर्घं गृहाण स्वधा | ओं भगवन् पुष्पं गृहाण वौषट् | ओं भगवन् धूपं गृहाण नमः | ओं भगवन् दीपं गृहाण नमः | इत्थं विष्णोरपि ततो मूलेन देवं सम्पूज्य | (स्नानं पलयतं ज्ञेयमभ्यङ्गं पञ्चविंशतिः | पलानां तु सहस्रेण महास्नानं र?कीर्तितम् ||) अष्टभिः गडुकैः स्नपयेत् | विशेषदिनेषु महास्नानानि दद्यात् | पनीयान्तरितैः पयोदधि घृतक्षौद्रेक्षभिःसौषधी व्रीह्यद्भिः कुसुमोदकैः फलजलैः सिद्धार्थलाजोदकैः | गन्धाद्भिः शुभहेमरत्नकलसैः स्लिलै रिक्तं सदाह्युत्तमैः दद्यात् पञ्चदशाम्बुना सह महास्नानानिशम्भोः क्रमात् | ततो दीक्षितान् पितॄनुद्दिश्य तिलोदकं शिवगोत्रेण दद्यात् | अदीक्षितानां तु स्वगोत्रेण पीठाधस्तिलोदकं दद्यात् | ततो मन्त्रगडुकं मूलाङ्गैस्संपूज्य मृतमुद्रां बद्ध्वाष्टधा मूलं जप्त्वा मुख्यार्घ पात्रजलकणैर्मन्त्रगडुकमीश्वरं च संप्रोक्ष्य हस्तद्वयेन गृहीत्वा | ओं जुं अमृते अमृते अमृतेशाय प्रतिमां प्रविश्य घटिकां गृह्ण २ सान्निध्यं कुरु २ पञ्चब्रह्ममूर्तये वौषट् | इत्यनया विद्यया मृतपूर्णं विभाव्य | अमृते परामृते प्रतिमां प्रविश्य घटिकां गृह्णवौषट् | स्वाहेति मन्त्रेणामृतपूर्णं विभाव्य भगवन्तमभिषिञ्चेत् | भगस्य हृदयं लिङ्गं लिङ्गस्य हृदयं भगः | तस्मै ते भगलिङ्गाय ह्युमारुद्राय वै नमः || इत्यङ्गुष्ठमुष्टिकाभ्यां पीठलिङ्गे संस्पृश्य नेत्रस्पर्शः कायः | तथाङ्गुष्ठानामिकाभ्यां सालिग्रामं स्पृष्ट्वा नेत्रस्पर्शः कायः | ततोऽस्त्रेण निर्भत्सनं कुर्यात् | गृह्णन्तु शिवसंभक्ताः भूताः प्रासादजां वलिम् | ये ये भूताश्च ये भूतास्तेषामनुचराश्च ये || इति | ततो वेद्यन्तः प्राग्वदासनपक्षं सम्पूजयेत् | ओं आधारशक्तये नमः | ओं अनन्ताय नमः | पृथिव्यै नमः | सुरार्णवाय नमः | ओं कन्दाय नमः | ओं नालाय नमः | तत्कण्ठरूपेभ्यो विद्याविद्येश्वरेभ्यो नमः | ओं विद्यासिंहासनाय नमः | ओं धर्माय नमः | ज्ञानाय नमः | वैराग्याय नमः | ऐश्वर्याय नमः | ऐशान्यादि दिक्षु | अधर्माय नमः | अज्ञानाय नमः | अवैराग्याय नमः | अनैश्वर्याय नमः | प्रागादि दिक्षु | ओं ऋग्वेदाय नमः | यजुर्वेदाय नमः | सामवेदाय नमः | अथर्ववेदाय नमः | ओं कृतयुगाय नमः | त्रेतायुगाय नमः | द्वापर्युगाय नमः | कलियुगाय नमः | विदिक्षु | ओं अधच्छादनाय नमः | मध्यच्छादनाय नमः | ऊर्ध्वच्छादनाय नमः | पद्माय नमः | दलेभ्यो नमः | केसरेभ्यो नमः | ओं कर्णिकायै नमः | ओं सूर्यमण्डलाय नमः | सोममण्डलाय नमः | वह्निमण्डलाय नमः | सूर्यमण्डलाधिपतये ब्रह्मणे नमः | सोममण्डलाधिपतये विष्णवे | वह्निमण्डलाधिपतये रुद्राय नमः | ओं सत्वाय नमः | रजसे नमः | तमसे नमः | ओं वामायै नमः | ज्येष्ठायै नमः | रौद्र्यै काल्यै कलविकरिण्यै बलविकरिण्यै बलप्रमथिन्यै सर्वभूतदमन्यै मनोन्मन्यै नमः | इति पुष्करनवके | ततः महाप्रेतासनाय नमः | ओं हां मूर्तये नमः | तदुपरि देवं संस्थाप्य | विष्णोरपि पूर्ववदासनं दद्यात् || ओं हूं अघोरेभ्य इति मूलम् | ओं क्षं ईशानवक्त्राय नमः | ईशकोणे | ओं यं तत्पुरुषवक्त्राय नमः | पूर्वे | ओं रं अघोरवक्त्राय नमः | दक्षिणे | ओं वं वामदेववक्त्राय नमः | उत्तरे | ओं लं सद्योजातवक्त्राय नमः | पश्चिमे | ओं अघोरेभ्यः सर्वात्मने हृदयाय नमः | आग्नेये | ओं थ घोरेभ्यो ब्रह्मशिरसे स्वाहा | ऐशे | ओं घोरघोरतरेभ्यश्च ज्वालिन्यै शिखायै वौषट् | नैर्-ऋते | ओं सर्वतश्च वसवेभ्यः पिङ्गलाय कवचाय हुम् | वायौ | ओं जुं सः ज्योतीरूपाय नेत्रायवषट् | कर्णिकोपरि | ओं नमस्ते रुद्ररूपेभ्यो दुर्भेद्याय पाशुपतास्त्राय फट् | सर्वदिक्षु | ओं हूं ह्रीं अघोरेश्वरि हूं फट् | अघोरेश्वर्यै नमः | देवी मूलम् | वक्त्राणि श्रीदेववत् | ओं हामित्यादि दीर्घैरङ्गानि | ओं हूं निष्कलस्वच्छन्दभैरवाय नमः | वक्त्राङ्गानि श्रीदेवीवत् | ततः आयुधरूपाः मुद्राः पूजयेत् | ओं खड्गाय नमः (द) | ओं खेटाय नमः (वा) | पाशाय (वा) अङ्कुशाय (द्) शराय (द्) पिनाकाय (वा) वराय (वा) अभयाय (द) मुण्डाय (द) खट्वाङ्गाय (वा) वीणायै (वा) डमरवे (द) घण्टायै (वा) त्रिशूलाय (द) वज्राय (द) दण्डाय (वा) परशवे (द) मुद्गराय (वा) ओं क्ष्म्र्यूं कपालेशभैरवाय नमः | पूर्वे | ओं ह्रूं शिखि वाहन भैरवाय नमः | आग्नेये | ओं क्षूं क्रोधराजभैरवाय नमः | दक्षे | ओं रध्रू-औं विकरालभैरवाय नमः | नैर्-ऋते | ओं ह्वू-औं मन्मथभैरवाय नमः | पश्चिमे | ओं ह्र्यूं मेघनादभैरवाय नमः | वायौ | ओं हुं सोमराजभैरवाय नमः | उत्तरे | ओं ह्र्क्ष्म्ल्व्यूं विद्याराजभैरवाय नमः | ईशाने | ततः सप्तावरणपूजा | तत्रादौ विद्येश्वराः | ओं ह्रीं अनन्ताय नमः | ओं झ्रूं सूक्ष्माय नमः | ओं मूं शिवोत्तमाय नमः | ओं क्रूं एकनेत्राय नमः | ओं क्ष्यां एकरुद्राय नमः | ओं यलूं त्रिमूर्तये नमः | ओं ह्जूं श्रीकण्ठाय नमः | ओं शीं शिखण्डिने नमः | इति विद्येश्वराष्टकं पूर्वादिदिक्षु | ओं रां रीं न्लूं नन्दिने नमः | ओं मां मीं म्लूं ह्लौं महाकालाय नमः | ओं ह्स्रां भृङ्गिरुद्राय नमः | ओं गूं गां गणपतये नमः | ओं व्रां वृषभाय नमः | ओं ह्स्रौं कुंकुमाराय नमः | ओं ह्रीं सः अम्बिकायै नमः | ओं ह्सूं चण्डेश्वराय नमः | इति गणेशाष्टकं प्रागादिदिक्षु | एवं लोकेशाः | ओं लूं इन्द्राय वज्रहस्ताय नमः | ओं रूं अग्नये शक्तिहस्ताय नमः | ओं ङूं यमायदण्डहस्ताय नमः | ओं क्षूं निर्-ऋतये खड्गहस्ताय नमः | ओं बूं वरुणाय पाशहस्ताय नमः | ओं धूं वायवे ध्वजहस्ताय नमः | ओं कुंकुवीराय गदाहस्ताय नमः | ओं मूं ईशानाय त्रिशूलहस्ताय नमः | ओं आं ब्रां ब्रं ब्रह्मणे पद्महस्ताय नमः | ओं ह्लां अनन्ताय हलहस्ताय नमः | इति लोकेशाः | ओं ज्म्र्यूं जयायै नमः | ओं ड्म्र्यूं विजयायै नमः | ओं गं सुभगायै नमः | ओं पं दुर्भगायै नमः | ओं म्स्र्यूं जपन्यै नमः | ओं पंर्थहिन्यै नमः | ओं ह्स्र्यूं अपराजितायै नमः | ओं रां कराल्यै नमः | इति मातराः अथ मूलेन सूर्याय नमः | ओं स्रूं चन्द्रमसे नमः | ओं र्ह्रूं अङ्गारकाय नमः | ओं स्ह्र्यूं बुधाय नमः | ओंर्सूं जीवाय नमः | ओं ह्रीं भार्गवाय नमः | ओं र्क्ष्म्र्यूं सनैश्चराय नमः | ओं धूं राहवे नमः | ओं ह्रीं केतवे नमः | इति ग्रहाः | ओं अनन्तनागराजाय नमः | ओं वासुकिनागराजाय नमः | एवं पद्म | महापद्म | तक्षक | कार्कोटक | शङ्खपाल | कुलिकनाग | इति नागराजाष्टकम् | ओं वज्राय फट् | ओं शक्तये फट् | दण्डाय | खड्गाय | पाशाय | ध्वजाय | गदायै | त्रिशूलाय | पद्माय | हलाप फट् | इति वज्रद्यावरणम् | इति सप्तावरणपूजा || ततो नाडीसन्धानम् || आत्मनः कर्मस्थानादुत्थितां शक्तिं ध्यात्वा | द्वादशान्तं यावत् प्रसृतां | तत्स्थानादमृतं गृहीत्वा | नासिक्य द्वादशान्तेन वामनासापुटेन निर्गतां | देवस्य दक्षिणनासापुटेन प्रविष्टां | तस्य कर्मस्थानप्राप्तां | तस्मादुत्थितां | तद्द्वादशान्तं प्राप्तां | तस्मादमृतं गृहित्वा तद्वामनासापुटेन निर्गतां विष्टां मित्थं सर्वावरणेष्वेकामेवनाडीं प्रसृतां पुनर्दक्षिणनासापुटेन स्वात्मनः प्रवि भावयेत् | इति नाडीसन्धानम् | ततः परमीकरणम् | आत्मनः कर्मस्थानादुत्थितां शक्तिं ध्यात्वा | द्वादशान्तेन निर्गतां | युगपत्सवावरणानां | द्वादशान्ते प्रविष्टामविच्छिन्न प्रवाहेन स्थितां स्वात्मनि लीनां भावयेत् | इत्थं पाद्याचमनीयार्घ्यमन्त्रसन्धान नाडीसन्धान परमीकरणान्तं सम्पूज्य | पश्चाद् विपुलां पूजां कृत्वा | यथा शक्तिजपं मूलस्य कुर्यात् | वक्त्राङ्गानां दशांसाः | गुह्याति गुह्यगोप्तात्वं गृहाणास्मत् कृतं जपम् | सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत् प्रसादात् वधिस्थिते || इति जप निवेदनम् | ततोर्घपात्रादभ्युक्ष्याऽमृत मुद्रयाऽमृतीकृत्य | ओं सः अमृतोद्भवाय सोमायान्राप वौषत् | द्रव्य स्वरूपिणि ठः ठः उत्पन्नममृतं दिव्यं प्राक्क्षीरोदधिमन्थनात् | अन्नममृतरूपेण नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् || इति मूलं स्मृत्वा नैवेद्यं निवेद्य | क्षेत्रेश पूजां कुर्यात् || ओं ह्रां क्षं क्षूं हेरुकाय नमः | पूर्वे | ओं ऐं ह्रीं लां क्षें क्षीं त्रिपुरान्तकाय नमः | आग्नेये | ओं ह्रीं हूं क्षीं अग्निवेतालाय नमः | दक्षे | ऐं ह्रीं क्षूं हूं अग्निजिह्वाय नमः | नैर्-ऋते | ओं ह्रीं ह्रीं हूं कुर्पराय नमः | पश्चिमे | कालाय नमः | वायौ | ओं क्षा यूं क्षीं करालिने नमः | उत्तरे | ओं आं यूं क्ष्मीं एकपादाय नमः | ऐशे | ओं क्षूं यूं क्षां भीमरूपाय नमः | मध्ये | ऊर्ध्वे डामराय नमः | अधः हाटकेश्वराय नमः || अथ विसर्जनम् | आज्ञां मे दीयतां नाथ नैवेद्यस्यास्य भक्षणे | शरीरयात्रा सिद्ध्यर्थं क्षमस्व परमेश्वर || ओं हूं भगवन् क्षमस्व हूं फट् | हूं भगवति क्षमस्व हूं फट् | यत् किञ्चित् कुर्महे देव सदासुकृत दुष्कृतम् | तन्मे शिवपदस्थस्य हूं हः क्षपय शङ्कर || क्षः क्षः क्षपय शङ्करेत्यपि पाठः | एतावत्य स्मदर्थे शक्षन्तव्यं खेदितोसिभोः | इति क्षान्तिमन्त्रः | ज्वालारूपं समुत्थाय प्रशान्तपरमातमनेः | ध्यायेदर्चेश्च सन्तुष्टं प्रणमेदादराश्शिवम् || क्षमस्व न्यूनाधिक भावयुक्तं मयाकृतं दर्शय विश्वमूर्ते | प्रसीद देवेश नमोस्तुभ्यं प्रयाहि तुष्टः पुनरागमाय | द्रव्यहीनं क्रियाहीनं मन्त्रहीनं च यद्गतम् | तत्सर्वं पूर्णतां पातु त्वत् प्रसादान् महेश्वर || ततः पूजितमन्त्रान् स्फुरद् वह्निकणाभान्विभौ लीनान् ध्यात्वा | तं च विभुं ज्वालारूपं हृत्स्थं भावयेत् | इति शिवम् | ततस्समया | ततोर्घपात्रं स्वीकुर्यात् | ततः एकपादं | करालिनि | तं कालाख्ये | तमग्नि जिह्वे | तमग्नि वेताले | तंत्रिपुरान्तके | तमामर्दके | तं मुद्गरे | तं परशौ | तं दण्डे | तं वज्रे | तत्त्रिशूले | तद्घण्टायां | तां डमरौ | तं वीणायाम् | तां खट्वाङ्गे | तं कपाले | तदभये अभयं वरे | वरं पिनाके | पिनाकं शरे | शरमङ्कुशे | अङ्कुशं पाशे | तं खेटके | तं खड्गे | खड्गमीशाने | तं कुवीरे | तं वायौ | तं वरुणे | तं नैर्-ऋते | तं यमेतं अग्नौ | तमिंद्रे | इन्द्रं विद्याराजभैरवे | तं सोमराजभैरवे | तं मेघनादभैरवे | तं मन्मथभैरवे | तं विकरालभैरवे | तं क्रोधराजभैरवे | तं शिखिवाहनभैरवे | तं कपालेशभैरवे लीनं भावयेत् | प्राग्वत्कपालेशभैरवं | आमर्दके लीनं भावयेत् | आमर्दकं शक्तौ | शक्तिऽमस्त्रे | अस्त्रं नेत्रे | नेत्रं कवचे | कवचं शिखायां शिखां शिवसि | शिरो हृदयदेशे | हृदयं सद्योजाते सद्योजातं वामदेवे | वामदेवमघोरे | तं तत्पुरुषे | तमीशाने | तं सकलभट्टारके | तं निष्कलमन्त्रेश्वरे | तमर्घपात्रे | अर्घपात्रं स्वात्मनि लीनं भावयेत् | इष्ट्वा श्रीमत्स्वतन्त्रोक्त क्रिययाभैरवं बुधाः | लभन्तां तन्मयीभावं सदास्वातन्त्र्य सिद्धये | विगलति भवदौर्गत्यं मोक्ष श्रीः | श्रयति हृत्कजं कचति | प्रसरति परमानन्दो | यत्र तदीशार्चनं जयति | भवत्यपि पाठः समाप्तेयं स्वच्छन्दपत्रिका स्वात्मभैरवभट्टारक प्रीतये भूयादिति शिवम् || अथसमया || विधिलोपनिवारणार्थं समया पूज्या || ओं जुं सः अमृतेशाय अमृतमूर्तये सर्वभूतान्तरात्मने महाव्योमशरीराय सर्वसमयलोपान्निवारय समयं प्रपूरय सर्वसाधारण मन्त्रशरीराय ह्रीं स्वाहा | ओं ह्रीं अमृते परामृते नित्य क्लीं सः अमृतेश्वरी सर्वभूतान्तरस्थे ब्रह्मस्वरूपे महाव्योमशरीरे सर्वसमयलोपान्निवारय सर्वसमयं प्रपूरय अमृतलक्ष्म्यै स्वाहा | ओं हूं शान्तज्ञान स्वरूपाय हां हीं हूं हैं हौं हः सर्वसमयलोपनिवारकाय ह्रीं स्वाहा | इति स्वच्छन्दसमया | ओं अघोरे जुं थ घोरे सः घोरघोरतरे | ह्रीं सर्वतः शर्वसर्वे | हूं नमस्ते रुद्ररूपे अस्त्राय फट् | ओं अघोरे सर्वात्मने हृदयाय नमः | ओं जुं थ घोरे ब्रह्मशिसरे स्वाहा | सः घोरघोरतरे ज्वालिनिशिखायै वौषट् | ओं ह्रीं सर्वतः शर्वसर्वेपिङ्गलाय कवचाय हुं हूं नमस्ते रुद्ररूपे दुर्भेद्याय पाशुपतास्त्राय फट् | इत्युत् कीलनविद्या | अघोरस्योत् कीलनम् | ओं अघोरे ऐं थ घोरे ह्रीं घोरघोरतरे श्रीं सर्वतः सर्वसर्वे | फ्रें रुद्ररूपे ह्स्फ्रें नमस्ते | भकारसहितं मन्त्रं नमस्ते मध्य संस्थितम् | अष्टौकीलामयादत्तास्तेनासौ नैव सिद्ध्यति || एतेषु सर्वतन्त्रेषु वीर्यहीनं प्रकाशितम् | जीवप्राणविनिर्मुक्तं पञ्चबीजविवर्जितम् || अथामृतीस्वरपूजनम् || ओं अमृतेशायविद्महे महादेवायधिमहि | तन्नोरुद्रः प्रचोदयात् ३ || द्रव्यशुद्धिदिग्बन्धन प्राणायामादि विधाय कराङ्गन्यासं कृत्वा ध्यायेत् | हं मूर्तये नमः | देवं तामरसासनं शशिकलालङ्कारमङ्कारमच्छङ्खाम्भोजलसद्वराभय महालक्ष्मी समुद्भासितम् | सव्यासव्यकदोवराभय सुधाकुम्भेन्दुमिन्दूलसत्सौम्यास्यं च चतुर्भुजं च भगवन्नेत्रं त्रिनेत्रं नुमः | मानसैः पाद्यादिभिः पूजनम् | ओं जुं सः अमृतेश्वरभैरवाय नमः | ओं जुं हृदयाय | ओं व्यों शिर | ओं ईं शिखा | ओं ह्नूं कव | ओं ज्यों नेत्रे | ओं फट् अस्त्रा | ओं जुं सः अमृतलक्ष्म्यै नमः | श्रीदेव्यङ्गानि श्रीदेववत् | ओं शिवतत्वाय नमः | ओं जुं विद्यातत्वाय | ओं सः आत्मतत्वाय नमः | इन्द्रादि लोकपालेभ्यो नमः | ब्राह्म्यादि मातृभ्यो नमः | इत्यादि || ओं विभ्रद्दोर्भिः कुठारं मृगमभयवरौ सुप्रसन्नोमहेशः सर्वालङ्कारदीप्तस्सरसिजनिलयो व्याघ्रचर्मा वासः | ध्येयो मुक्तापरागामृतरसकलैताद्रि प्रभः पञ्चवक्त्रस्त्र्यक्षः कोटीरकोटीघटित तु हिनरोचिष्कलातुङ्गमौलिः | अस्यमन्त्रस्य | वामदेव ऋषिः पङ्क्तिच्छन्दः | ई शोदेवता आत्मन इष्टसिद्ध्यर्थं विनियोगः | ओं नमः शिवाय | ओं हृ | न शिर | मः शिखा | शि कव | वा नेत्रे | य अस्त्राय | न ईशानमूर्ध्ने नमः | मः तत्पुरुषवक्त्राय नमः | शि अघोरहृदयाय नमः | वा वामदेवगुह्याय नमः | य सद्योजातमूर्तये नमः | न ऊर्ध्ववक्त्राय नमः | मः पूर्ववक्त्राय नमः | शि दक्षिणवक्त्राय नमः | वा उत्तरवक्त्राय नमः | य पश्चिमवक्त्राय नमः | आवृतिराद्या मूर्तिभिरङ्गैरन्या पराप्यनन्ताद्यैः अपरोमाद्यैः अपरेन्द्राद्यैरपरा तदायुधैः प्रोक्ता | ओं शर्वाय देवाय क्षितिमूर्तये नमः | ओं भवाय देवाय जलमूर्तये नमः | ओं रुद्राय देवाय अग्निमूर्तये नमः | ओं उग्राय देवाय वायुमूर्तये नमः | ओं भीमाय देवाय आकाशमूर्तये नमः | ओं पशुपतये देवाय यजमानमूर्तये नमः | ओं महादेवाय सोममूर्तये नमः | ओं ईशानाय देवाय सूर्यमूर्तये नमः | मध्ये दुर्गायै नमः | ततोङ्गानि | ततः अनन्ताय नमः | इत्यादि | उमायै नमः | इत्यादि | इन्द्राय वज्रहस्ताय नम | इत्यादि | वज्राय फटित्यादि | इति पञ्चाक्षर पूजनम् | हां निवृत्ति कलाधिपतये ब्रह्मणे नमः | हीं प्रतिष्ठाकलाधिपतये विष्णवे नमः | हूं विद्यकलाधिपतये रुद्राय नमः | हैं शान्ताकलाधिपतये ईश्वराय नमः | हः शान्त्यतीताकलाधिपतये सदाशिवाय नमः | ओं मन्त्राध्वने नमः | ओं पदाध्वने नमः | वर्णाध्वने | भुवनाध्वने नमः | तत्त्वाध्वने | ओं कलाध्वने नमः || ओं सकलाकलो विमिश्रः सदसत्सर्वेश्वरो महामन्त्रः | तमिहमहापापहरं पशुपाशजीघांसकं वन्दे | तन्महेशाय विद्महे व्योमरूपाय धीमहि | तन्नो नमः शिवः प्रचोदयात् ३ | ओं व्योमव्यापिने ५ व्योमरूपाय ५ सर्वव्यापिने ५ शिवाय ३ अनन्ताय ४ अनाथाय ४ अनाश्रिताय ५ ध्रूवाय ३ शाश्वताय ४ योगपीठसंस्थिताय २ नित्यं योगिने ५ ध्यानाहाराय ५ ओं नमः शिवाय ६ सर्वप्रभवे ५ शिवाय ३ ईशानमूर्ध्नाय ६ तत्पुरुषवक्त्राय ७ अघोरहृदयाय ७ वामदेवगुह्याय ७ सद्योजातमूर्तये ७ ओं नमो नमः ५ गुह्यातिगुह्याय ६ गोप्त्रे २ निधनाय ४ सर्वविद्याधिपाय ७ ज्योतीरूपाय ७ परमेश्वरपराय २ अचेतन ३ व्योमना ४ व्यापिन् ४ अरूपिन् ६ प्रथम ६ तेजः ४ ज्योतिः ४ अरूप ३ अनग्ने ३ अधूम ३ अभस्म ३ अनादे ३ नानाना २ धू धू धू ३ ओं भूः २ ओं भुवः ३ ओं स्वः ३ अनिधन ४ निधन ३ निधनोद्भव ५ शिव २ सर्व २ परमात्म ४ महेश्वर ४ महादेव ४ सद्भावेश्वर ५ महातेजः ४ योगाधिपते ५ मुञ्च ४ प्रमथ ६ शर्व ४ भव ४ भवोद्भव ४ सर्वभूतसुखप्रद ८ सर्वसान्निध्यकर ७ ब्रह्मविष्णुरुद्रपर २ अनर्चित २ असंस्तुत २ पूर्वस्थित २ साक्षिन् २ उरु ४ पतङ्ग ६ पिङ्ग ४ ज्ञान ४ शब्द ४ सूक्ष्म ४ शिव २ शर्व २ सर्वद ३ ओं नमो नमः ५ ओं शिवाय ४ नमो नमः ४ ह्सू-औं मूलम् | ओं नमः सर्वात्मने शराय परमेश्वराय योगाय योगसम्भवाय कर २ कुरु २ सद्य २ भव २ भवोद्भव वामदेव सर्वाकार्यप्रसमन नमोस्तुते स्वाहा हृदयाय नमः | स्वशिवशिर नमः | शिरसे स्वाहा | शिवहृदय ज्वालिन्यै स्वाहा | शिखायै वौषट् | ओं शिवात्मकं महातेजस्सवज्ञमपराजितम् | आवर्तये महाघोरं कवचं पिङ्गलं शुभम् | कवचा वाहनम् | आयाहि पिङ्गल महाकवच शिवाज्ञया हृदयं बन्ध २ घूर्ण २ का कि २ सूक्ष्म २ वज्रधर २ वज्रपाश वज्राशनि मम शरीरमनुप्रवेश सर्वदुष्टान् स्तम्भय हूं फट् कवचाय हुम् | ओं प्रस्फुर २ स्फुर २ घोर घोरतर तनुरूप नट् २ प्रचट् २ कर्ष २ घातय २ हूं फट् अस्त्राय फट् | अस्य वक्त्रपञ्चकं साङ्गम् | तत्र गायत्री | शिवात्मकमिदं विश्वं शिवादेव प्रवर्तते | शिवाय शिवगर्भाय शिवस्सर्वं प्रचोदयात् ३ || ईशानस्सर्वविद्यानामीश्वरस्सर्वभूतानाम् | ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोधिपतिर्ब्रह्माशिवोमेस्तु सदाशिव ओं | ओं हूं अमोघ स्वाहा फट् हृद पञ्चमूर्ति ने नमः | शिर | ईशाने स्वाहा शिखा | ओं ज्वलन्ति नमः फट् कवचाय हूं सदसदोम् फट् अस्त्राय | तत्पुरुषाय विद्महे महादेवायधीमहि | तन्नोरुद्रः प्रचोदयात् ३ | तत्पुरुषसदसदोम् हृद | ओं भूस्स्वाहा शिर | ओं भुवः स्वाहा शिखा | ओं स्वः स्वाहा कव | तत्सदों अस्त्रा | ओं अघोरेभ्य इति | तत्सदोम् हृद | भवदण्ड हूं फट् शिर | भीमभीषणि सर्वविद्या हृदय विचारिणि हूं फट् शिखा | अमोघ हूं फट् कव | तत्सदोम् अस्त्राय | वामदेवाय नमः | ज्येष्ठाय नमः | रुद्राय नमः | कालाय कलविकरणाय बल विकरणाय बलप्रमथनाय सर्वभूतदमनाय मनोन्मनाय नमः | वामदेव तत्सदोम् हृद | वामदेवाय हूं फट् शिर | सर्वपापप्रणाशिनि वामदेवशिखे नमः शिखा | वामाचाराय हूं फट् कवचं तत्सदोम् अस्त्राय फट् | सद्योजातं प्रपद्ये वै सद्योजाताय वै नमः | भवे भवे नाडिभवे भजस्वमांभवोद्भव सद्यः कामाय स्वाहा हृद सद्यः कामवरदायनमो नमः स्वाहा शिर | ओं पन्नगरूपिणी स्वाहा शिखायै | सद्यो मूर्ति फट् कवचाय हुं | ओं हूं ओं फट् अस्त्राय फट् | शुभमस्तु || भगवन् शिवरात्रिव्रतमहं करिष्ये निर्विघ्नं सम्पादय स्वाहा | शिवरात्रिव्रतमिदं करिष्येहं महा फ 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